देश में कई गांव ऐसे हैं जहां के लोगों को आज भी पेट भर खाना नहीं मिलता। ऐसे ही एक गांव की हकीकत से हम आपको रूबरू कराने जा रहे हैं। इस गांव की एक मासूम के लिए सूखी रोटी और नमक ही पेट भरने का एक मात्र साधन है...
जैसे
ही मैं और मेरा सहयोगी खैरपुरा गांव के अंदर जाने लगे तो हमने देखा कि एक बच्ची
अपने खपरैल व फूस के घर के बाहर बैठी सूखी रोटी और नमक खा रही थी। हम उसके पास
बैठे तो उस बच्ची ने बताया कि उसे पेट भरने के लए यही सूखी रोटी मिल पाती है, जबकि
दाल-रोटी, सब्जी व चावल खाये हुए तो उसे महीनों बीत गए हैं। ये हाल केवल इस बच्ची
का ही नहीं बल्कि गांव के कई बच्चे इसी अहार से अपना पेट भर रहे हैं।
दरअसल,
कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन और उसके बाद गांवों की मौजूदा स्थिति का जायजा लेने
के लिए गांव कनेक्शन की टीम अपने विशेष कार्यक्रम #coronafootprint की कवरज के लिए बुंदेलखंड में यूपी के हिस्से
वाले ललितपुर जिले के मडावरा ब्लॉक की जलंधर ग्राम पंचायत के खैरपुरा गांव में
पहुंची थी। यह गांव मध्यप्रदेश की सीमा पर बसा हुआ है। इस गांव में अधिकतर लोग
सहरिया जनजाति (आदिवासी) के हैं और यहां पर जंगल से लकड़ियां लाकर बेचना व महुआ और
तेंदु के पत्तों का भी काम किया जाता है।
गांव
खैरपुरा के लोगों की मौजूदा जिंदगी की हकीकत जानने के लिए हम कुछ समय गांव की 14
वर्षीय रौशनी के पास ही रूक गए। अपने बारे में बात करते हुए रौशनी ने बताया कि वह
भी अन्य ग्रामीण बच्चों की तरह सूखी रोटी की खाने को मजबूर है। कई असुविधाओं के
बीच सूखी रोटी मिलना भी यहां पर एक बड़ी बात मानी जाती है। बच्चों के पौष्टिक आहार
बेहद आवश्यक होता है, लेकिन जब पेट की आग बुझाने हो तो सूखी रोटी से भी काम चलाया
जा सकता है।
रौशनी
ने बताया कि उसके गांव में करीब 160 से 170 घर बने हैं और लगभग हर घर में एक या दो
लड़कियां है, लेकिन पढ़ने के लिए केवल वो और उसकी छोटी बहन ही स्कूल जाती हैं।
अन्य ग्रामीण लड़कियां घर का काम करती है या जंगल से लकड़ियां लाती है।
इस
ग्राम पंचायत में खैरपुरा, नीमटौरिया सहित 5 गांव आते हैं। इस ग्राम पंचायत
में दो आंगनबाड़ी केंद्र आते हैं, इन केंद्रों के अनुसार गांव में 3 माह से 6
वर्ष के पंजीकृत बच्चों की संख्या 206, 24 महिलाएं गर्भवती,
71 किशोरियां व 20 दाई महिलाएं है। आंगनबाड़ी
के आंकड़ों के अनुसार सभी ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का लाभ पूरी तरह से मिल रहा
है।
रौशनी
ने बताया कि हमारे गांव में न तो कोई नेता आते हैं और न ही यहां कोई अधिकारी आते
हैं। आशा बहु भी बस गांव एक चक्कर लगाकर चली जाती है। वह केवल कुछ लोगों के वहां
ही जाती है। जबकि कई लोग को हमसे इसीलिए भी बात नहीं करते क्योंकि हम पुराने व
गंदे कपड़ों में रहते हैं।
जैसे-जैसे
रोशनी अपनी परेशानियां बयां कर रही थी वैसे-वैसे सरकारी योजनाओं की पोल खुलने लगी
थी। उसने बताया कि गांव में एक सरकारी स्कूल है, जिसे गांव से दूर जंगल में बनाया
गया है। वहां केवल छोटे बच्चे ही पढ़ने जाते हैं, लेकिन वहां जो बच्चे जाते हैं या
तो वह घुमते रहते हैं या मास्टर जी उन्हें एक कमरे में बंद कर देते हैं। वहां पर
बच्चों को किताबें व बैग कुछ नहीं मिलता।
इस
गांव की एक 45 वर्षीय महिला केसर ने बताया कि उसके तीन बच्चे हैं। सरकार लॉकडाउन
में शर्तों सहित ढील दे चुकी हैं इस बात से केसर बेखबर है। केसर पिछले दो महीनों
से लड़कियां बेचने अन्य गांवों में नहीं गई है। केसर ने बताया कि सरकार के द्वारा
मुफ्त राशन (चावल, गेहूं व 1किलो चना) मिल तो रहा है लेकिन वो घर के लिए काफी नहीं
होता। इतना ही नहीं कई बार तो चने को पीसकर पानी में भीगोकर ही कुछ बनाना पड़ता
है।
सरकार
की ओर से जनधन व रसोई गैस के पैसे खाते में नहीं आते हैं इसके लिए कई बार प्रधान
से कहा है। लेकिन वो भी आज कल कहकर बात को टाल देते हैं।
सरकारी
आंकड़ों के अनुसार जलंधर ग्राम पंचायत में 323 पात्र परिवार रहते हैं,
जहां के करीब 1109 लोगों को सरकारी योजनाओं का
लाभ मिल रहा है। यहां पर अंत्योदय के 90 कार्ड बने हैं,
जिससे 230 लोगों को सेवएं मिल रही है। इसके साथ
ही करीब 413 लोगों के पास राशन कार्ड है, जिससे करीब 1339 तक राशन का आनाज पहुंच रहा है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार इस गांव की आबादी 1941 है,
इसमें
447 अनुसूचित जनजाति और 340 अनुसूचित जाति के लोग हैं।
गांव
की रोशनी का कहना है कि हमारे गांव के अधिकतर लोगों के राशन कार्ड बने हुए हैं
लेकिन सभी को मुफ्त राशन की सुविधा का लाभ नहीं मिल पाता है। राशन से हम लोगों को
कई बार खराब चावल व गेहूं, चना दिया जाता है, उन्हें लगता है कि गरीब व अनपढ़
लोगों के कुछ समझ नहीं आएगा। लेकिन जानवर की तरह होने वाले बर्ताव को हम लोग भी
समझते हैं।
सरकार की ओर से भले ही यह कहा गया हो कि बिना
राशन कार्ड वाले गरीबों को भी राशन दिया जाए लेकिन कोटेदारों की मनमानी के आगे यह
आदेश गांव तक आते-आते काफूर हो जाते हैं।
रोशनी
अपनी परेशानियों पर बोलते हुए कहती है “मैनें टीवी पर कई बार देखा और सुना है कि मोदी
जी गरीबों की मदद कर रहें हैं लेकिन कुछ लोगों की वजह से उसका लाभ हमें नहीं मिल
पाता है।”
इतने
में सड़क के दूसरी ओर खड़ी दुबली पतली महिला की ओर इशारा करते हुए रौशनी ने बताया
कि वह महिला रौशनी की भाभी सुनिता है। सुनिता ने बताया कि फिलहाल उनके दो बच्चे
हैं, जबकि दो बार उनका गर्भपात हो गया। पहले तो समय पर टीके लगाए गए थे लेकिन
गर्भपात वाले बच्चों के दौरान उन्हें टीके नहीं लगे साथ ही उनको विटामिन की
गोलियां भी नहीं दी गई।
गांव
की प्रधान दीपा सिंह कहती है कि पहले गांव में सभी को राशन मिलता था लेकिन आधार
कार्ड व अंगूठा लगने के बाद से ग्रामीणों को कुछ दिक्कत का सामना करना पड़ता है। कोटेदार
बिना फिंगर प्रिंट के राशन नहीं देता है। वहीं कई बार तो दो महीनों के फिंगर
प्रिंट लगाकर एक माह का ही राशन दिया जाता है।
मनरेगा
पर सवाल करने पर प्रधान के बेटे ने बताया कि 30 से 40 ग्रामीणों को काम दिया जाता
है. लेकिन वह काम करना पसंद नहीं करते।
इस
तरह देश का यह गांव आज भी सरकार की योजनाओं के सही रूप में क्रियांवन की बाट जोह
रहा है।
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